आज लाख बदनाम कर लो मुझे,
एक दिन मैं खुद से खुद में निखर जाऊंगा ,
बेर रंजिश के पर्दे फैलाओगे अगर तो मैं अनुरक्ति के आईने बनाऊंगा।
तू क्या बनाम करेगी दुनिया
बदनामी का सिलसिला भी अधूरा है
वक्त रहते मैं समझ जाऊंगा
क्योंकि कामयाबी का नाम परिश्रम और पुनिया हैं
हां जरूरतें पूरी हो जाने से दोस्ती भी धराशाह है
पर बस अब..
वक्त और खुद की मेहनत का ही भरोसा है।
वैसे शुक्रगुजार हूं कि तुम अभी भी मेरे साथ हूं
वैसे शुक्रगुजार हूं कि तुम,अभी भी मेरे साथ हो
कैसे कहूं कि तुम बेहतरीन, बेमिसाल अपने आप हो।
वैसे खामोशी और तन्हाई की रात है
बदनामी की छोड़ो
हर लम्हे में दिखावे भरी जिंदगी की ही बात है..।
आज लाख बदनाम कर लो मुझे,
एक दिन मैं खुद से खुद में निखर जाऊंगा ,
एक दिन मैं खुद से खुद में निखर जाऊंगा ,
हर कर कहीं गिर भी गया
तो खुद ब खुद वापस उठ कर खड़ा हो जाऊंगा।
वे बेगुनाह होने से भी गुनाह की फरियाद करते हैं
मेरे अच्छे बुरे वक्त के बहाने
मेरी खामोशी को नजरअंदाज करते हैं।
गिले-शिकवे की कसौटी में वे मुझे ना ही सही
चलो अच्छा है वह अपने आप को बर्बाद करते हैं।
आज लाख बदनाम कर लो मुझे,
एक दिन मैं खुद से खुद में निखर जाऊंगा ,
एक दिन मैं खुद से खुद में निखर जाऊंगा ,
ना कभी कभी गिड़गिड़ाया था ना कभी गिड़गिड़ाऊंगा
अपने हौसलों के पंखों को फैला कर
अपना एक नया जहान बनाऊंगा।
बुजदिले ए मौत कड़वेपन से सरेआम करती है
तुम पैर फैलाओगे
मैं स्नेह जताऊंगा...।
जलन की ज्वलंत अग्नि में जलावगे अगर
तो मैं अपने कर्मो की शीतलता से इसे बुझाऊंगा
बेर रंजिश के पर्दे फैलाओगे अगर
तो मैं अनुरक्ति के गीत गाऊंगा ।
परिचय ---== कवि इन चंद पंक्तियों में अपने काल्पनिक जीवन (पूर्ण रूप से काल्पनिक कविता )में घटित होने वाली उन विरल पीड़ा को बयां करने की कोशिश करते हैं जो उनके मन को कहीं अंदर से काट रही थी यू कहें तो उनके ह्रदय को चोटिल कर रहा थी
और इस पीड़ा का मूल कारण उन्हें बिना किसी अर्थ के बदनामी की आग में झोंकना था , कवि अपने इन पंक्तियों में खुद को बदनामी के अंधकार से निखर लाने की बात कहते हैं हैं।
व्याख्या- कवि कहते हैं आज लाख बदनाम कर लो मुझे मैं खुद से खुद में निखर जाऊंगा ---
--============= इस पंक्ति से कल्पनात्मक रूप में व्यक्ति के व्यक्तित्व को देखते हुए कवि का आशय है कि आज लाख बदनाम कर लो मुझे चाहे बदनामी के शीर्ष पर भी पहुंचा दो मेरी जितनी भी बुराइयां कर लो भले आज हार जाऊंगा यह गिर जाऊंगा पर एक दिन फिर से उठ कर खड़ा हो जाऊंगा खुद से ही मेहनत करके अपनी काबिलियत को निखार लूंगा और खिले हुए फूल की तरह निखर जाऊंगा ।
दूसरी पंक्ति में वे कहते हैं कि बेर रंजिश के पर्दे से फैलाओगे अगर, तो मैं अनुरक्ति के आईने बनाऊंगा
वे इसका आशय यह यह बतलाते हुए कहते हैं कि दुश्मनी, छल कपट से मेरे जीवन में औरों पर मेरे प्रति द्वेष फैलाओ गे मुझे कोई फिक्र नहीं होगी मैं उनके प्रति भी प्रेम, स्नेह की नीति के अनुरूप एक ऐसा आईना बनाऊंगा जिन से शायद उनके ह्रदय मैं फैलाई गई
गलतफहमी और कटु विचार की भावना अंकुरित ना हो सके ।
इसके बाद इसके आगे की पंक्तियों में साधारण शब्दों से कवि ने पूरे कविता को समझाने का प्रयास किया है जिसकी व्याख्या करना इतना जरूरी नहीं आप इसे पढ़कर ही समझ सकते हैं।❤️
धन्यवाद ।।



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