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साप्तांग सिद्धांत (Saptanga theory)



विष्णुगुप्त (कौटिल्य) ने साप्तांग सिद्धांत के माध्यम से राज्य के सात अनिवार्य अंगों (तत्त्वों) का विवेचन किया है। उनके अनुसार किसी भी राज्य के निम्नलिखित सात अंग होते हैं:


स्वामी (राजा)


अमात्य (मंत्री/ऊच्च अधिकारी)


जनपद (क्षेत्र व जनसंख्या)


दुर्ग (किला)


कोष (धन/राजसंग्रह)


बल (सेना)


मित्र (सहयोगी/मित्र राष्ट्र)


राजा (स्वामी)

कौटिल्य के अनुसार राजा ही इन सभी सात अंगों की आत्मा है। उन्होंने राजा के लिए कई गुणों और प्रशिक्षणों का उल्लेख किया है तथा यह स्पष्ट किया है कि राजा की प्राथमिक जिम्मेदारी अपनी प्रजा के कल्याण की देखभाल करना है — राजा अपनी प्रजा की खुशी में अपनी खुशी समझे। मौर्य शासन में शासक पितृसत्तात्मक व्यक्तित्व के धनी थे और उन्होंने प्रजा के हित को महत्व दिया। अशोक ने अपने विख्यात शिलालेख (शिलालेख VI) में कहा—“सब्बे मुनिस्से पजा मम” (सभी मनुष्य मेरी संतान हैं) — जो उनके पितृसुलभ दृष्टिकोण और सफल प्रशासन के महत्व को दर्शाता है। साथ ही स्रोत यह भी बतलाते हैं कि राजा का कार्यक्रम अत्यंत व्यस्त और विविध कार्यों से भरा रहता था।


मंत्रिमंडल और मंत्री

मंत्रिमंडल राज्य व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण अंग था। कौटिल्य इसे अनिवार्य मानते हैं — जैसे रथ अकेले एक पहिए पर नहीं चल सकता, वैसे ही बिना मंत्रिमंडल के राज्य का संचालन राजा अकेले प्रभावी ढंग से नहीं कर सकता। मंत्रिमंडल के सदस्य (मंत्रि) उच्च श्रेणी के परामर्शदाता होते थे और प्रशासनिक मामलों में राजा व मंत्रिपरिषद दोनों से परामर्श लेते थे। कौटिल्य ने मंत्रियों की योग्यता, उनकी परीक्षा व्यवस्था और चयन के मानदण्डों का उल्लेख किया है। मौर्यकालीन अभिलेख—विशेषकर अशोक के अभिलेख—मंत्रिपरिषद के अस्तित्व और प्रमुख पदों (पुरोहित, महामंत्री, सेनापति, युवराज आदि) की पुष्टि करते हैं। कौटिल्य ने मंत्रियों के कार्यों और वेतन के आधार पर उनकी श्रेणियों में भेद भी दर्शाया है।


अमात्य और प्रशासनिक नियुक्तियाँ

अमात्य प्रशासनिक अधिकारी या नागरिक प्रशासक थे, जिनकी नियुक्तियाँ उच्च प्रशासनिक व न्यायिक पदों पर की जाती थीं। उनके वेतन, सेवा नियम और भुगतान की विधियाँ कौटिल्य द्वारा बताए गए हैं। कौटिल्य ने विभिन्न प्रकार की परीक्षाओं का उल्लेख किया है जिनके आधार पर अभियुक्तों की नियुक्ति की जाती थी—जैसे:


धार्मिक परीक्षा (धर्मोपधशुद्ध) उत्तीर्ण करने वालों को प्रशासनिक न्याय के कार्यों के लिए नियुक्त किया जाता था।


आर्थिक परीक्षा (अर्योपधशुद्ध) उत्तीर्ण करने वालों की नियुक्ति कर अधिकारी के रूप में होती थी।


प्रेम-परीक्षा (कमोषधशुद्ध) उत्तीर्ण करने वालों को विहार भूमि के अधिकारी नियुक्त किया जाता था।


भयोपधशुद्ध (तया भवहीनता की परीक्षा) उत्तीर्ण लोगों को शीघ्र ध्यान देने योग्य कार्यों में लगाया जाता था।


केवल वे लोग उच्च पदों पर पदोन्नत किए जाते थे जिनका चरित्र व आचरण सभी प्रकार के प्रलोभनों में भी विश्वासार्ह पाया गया हो — जैसे मंत्री या राजा के परामर्शदाता। यद्यपि कौटिल्य चयन की विधि व मानदण्ड स्पष्ट करते हैं, वास्तविक कार्यान्वयन में कठोरता व सख्ती का पालन कितना हुआ, इस पर संदेह व्यक्त किया जा सकता है। फिर भी, अमात्यों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी क्योंकि अनेक सरकारी कार्य उन्हीं के द्वारा संपादित होते थे।


कौटिल्य के अमात्य (अधिकारियों) की तुलना यूनानी इतिहासकारों द्वारा वर्णित मजिस्ट्रेट, अशोक के अभिलेखों में उल्लेखित महामत्त तथा बाद के काल में ब्रिटिश भारत के I.C.S. अधिकारियों एवं स्वतंत्र भारत के I.A.S. अधिकारियों से की जा सकती है।


कोष (राजस्व) और समाहर्ता

समाहर्ता राज्य के राजस्व का केंद्रीय प्रभार संभालता था और अक्षपटलाध्यक्ष / महालेखापाल के निरीक्षण द्वारा आय-व्यय पर नियंत्रण रखता था। खजाना सुरक्षित कोषगृह/कोष्ठागारों में रखा जाता था और इसके संचालन में समाहर्ता का सहयोगी सन्निधाता भी कार्यरत रहता था।


राजस्व के प्रमुख स्रोतों में शामिल थे: भूमि कर, सिंचाई कर, सीमा शुल्क, पथ-अधिभार, दुकानदार कर, जहाज कर, जंगल व खदानों से आय, चारागाह, राज्य भूमि से आय, शिल्पकारों का शुल्क, जुआघर आदि। कौटिल्य कुछ विशिष्ट आय स्रोत भी बतलाते हैं जैसे पिंडकर (गाँवों द्वारा समय-समय पर दिया जाने वाला एक उपकर) और सेनभक्तम (सेना के गुजरने पर लगाया जाने वाला कर)।


सेना (बल)

कौटिल्य ने सैनिकों के प्रकारों का वर्णन किया है — वंशानुगत/स्थायी सैनिक (मूल), भाड़े के सैनिक (मृतक), जंगली कबीलों से प्राप्त सैनिक (अटाविक) तथा मित्रों द्वारा सुमति के रूप में प्राप्त सैनिक (मित्रवल)। उन्होंने विभिन्न सैन्य पदाधिकारियों के वेतन का भी उल्लेख किया है, जो प्रतिवर्ष निम्नानुसार दिए गए हैं:


सेनापति: 48,000 पण प्रति वर्ष


प्रशस्त (उच्च पद): 24,000 पण प्रति वर्ष


नायक: 12,000 पण प्रति वर्ष


मुख्य (एक अन्य अधिकारी): 8,000 पण प्रति वर्ष


अध्यक्ष: 4,000 पण प्रति वर्ष


साधारण प्रशिक्षित सैनिक: 500 पण प्रति वर्ष


वेतन का भुगतान नकद रूप में होता था।

कौटिल्य, मंत्रिपरिषद के सदस्य मंत्रियों का उनके कार्यों तथा वेतन के आधार पर अंतर स्पष्ट करता है।


अमात्य एक प्रकार के प्रशासनिक अधिकारी अथवा नागरिक प्रशासक थे जिनकी नियुक्तियां उच्च प्रशासनिक एवं न्यायिक पदों पर होती थीं। उनके वेतनमान, सेवा के नियम तथा भुगतान की विधि इस प्रकार थी-


धार्मिक परीक्षा (धर्मोपधशुद्ध) उत्तीर्ण होने वालों की नियुक्ति प्रशासनिक न्याय के लिए होती थी, आर्थिक परीक्षा (अर्योपधशुद्ध) उत्तीर्ण होने वालों की नियुक्ति कर अधिकारी के रूप में होती थी, प्रेम-परीक्षा (कमोषधशुद्ध) उत्तीर्ण होने वालों की, नियुक्ति विहार भूमि के अधिकारी के रूप में होती थी, तया भवहीनता की परीक्षा (भयोपधशुद्ध) उत्तीर्ण होने वालों की नियुक्ति शीघ्र ध्यान देने योग्य कार्यों में होती थी इनका उल्लेख कौटिल्य द्वारा किया गया है।


केवल वे लोग, जिनका आधरण सभी प्रकार के प्रलोभनों से जांच लिया जाता था, को उच्च पदों पर पदोन्नत किया जाता था जैसे कि मंत्री, अथवा राजा के परामर्शदाता। यद्यपि उनकी योग्यता तथा चयन की विधि कौटिल्य द्वारा दी जाती थी लेकिन उनके व्यवहार में सख्ती के साथ लागू होना संदेहात्मक है। उनकी भूमिका तथा कार्य बहुत महत्त्वपूर्ण थे क्योंकि सभी सरकारी कार्य उन्हीं के द्वारा किए जाते थे।


क्रौटिल्य के अमाल यूनानी इतिहासकारों के मजिस्ट्रेट तथा पार्षद, अशोक के अभिलेख के महामत्त, ब्रिटिश भारत के आई.सी.एस. अधिकारी तथा स्वतंत्र भारत के आई.ए.एस. अधिकारियों के समान थे।


समाहर्ता के पास राज्य के सभी राजस्वों का प्रभार था तथा वह अक्षपटलाध्यक्ष (महालेखापाल) के कार्यों के निरीक्षण


द्वारा आप तथा व्यय पर नियंत्रण रखता था।


राजस्व के स्रोत भूमि, सिंचाई, सीमा शुल्क, पथ अधिभार, दुकान कर, जहाज कर, जंगल, खान, चारागाह, राज्य भूमि, शिल्पकारों का शुल्क, जुआघर इत्यादि थे। कौटिल्य कुछ अन्य आय के स्रोतों का भी उल्लेख करता है जैसे कि पिंडकर (गांवों द्वारा समय-समय पर दिया जाने वाला एक रूपांतरित कर) तथा सेनभक्तम (सेना द्वारा गुजरने वाले क्षेत्रों पर लगाया जाने बाला कर) इत्यादि।


सन्निधाता मुख्य कोषाध्यक्ष समाहर्ता का सहयोग करता था। वह खजाने को मजबूत भवनों में सुरक्षित रखता था जिसे कोषगृह तथा कोष्ठागार कहा जाता था।


कौटिल्य ने कई प्रकार के सैनिकों का उल्लेख किया है, जैसे कि वंशानुगत (मूल), भाड़े के सैनिक (मृतक), जंगली कबीलों के सैनिक (अटाविवल) तथा मित्रों द्वारा दिए गए सैनिक (मित्रवल)। कौटिल्य विभिन्न सैनिक अध्यक्षों के वेतन का भी उल्लेख करता है। सेनापति का वेतन 48,000 पण प्रतिवर्ष, प्रशस्त का 24,000 पण, नायक का 12,000 पण, मुख्य का 8,000 पण, अध्यक्ष का 4,000 पण तथा साधारण प्रशिक्षित सैनिक का वेतन 500 पण प्रतिवर्ष था। वेतन का भुगतान नकद रूप में होता था।

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