आज हम जिस शख्सियत के बात करेंगे वो और कोई नहीं आदिवासियों के मसीहा बाबा कार्तिक उरांव हैं ।बाबा कार्तिक उरांव एक ऐसे युग पुरुष थे जिन्होंने अपने जीवन के समस्त कठिनाइयों से जूझते हुए कड़े संघर्ष के बावजूद ऊंची उड़ाने भरी और आदिवासियों के कल्याण के लिए खुद का जीवन समर्पित कर दिया। आदिवासी समाज के द्वारा बाबा कार्तिक उरांव जी को पंखराज साहेब की उपाधि दी गई है और उन्हें काला हीरा भी कहा जाता हैं कार्तिक उरांव जी का जन्म मध्यम किसान में 29 अक्टूबर 1924 को वर्तमान झारखंड राज्य के गुमला जिले में बाबा कार्तिक उरांव का जन्म पिता जौरा उरांव और माता बिरसों उरांव के संतान के रूप में हुआ था।
प्रारंभिक शिक्षा खौरा जामटोली में शिक्षक लुईश मिंज के मार्गदर्शन के बाद 1930 में गांव की देहलीज लांग कर । उन्होंने S.स्त हाई स्कूल गुमला में दाखिला ले लिया । यहां उनकी मुलाकात आयंता पंडित से हुई जिनकी छत्रछाया में उन्होंने नए-नए चीजों का अध्ययन करना प्रारंभ कर दिया इसी दौरान किशोरावस्था में उनका रुझान प्रकृति प्रेम के प्रति भी बढ़ा वे समय मिलने पर अक्सर जंगलो नदी तालाबों और पास के नहरों में जाया करते थे । एवं एकांत में अकेले समय बिताया करते थे ।आगे की पढ़ाई के लिए उनके पास पैसे नहीं थे।पर पढ़ाई के प्रति एक ललक और जुनून था जिसके तहत उन्होंने अपने ही विद्यालय के कार्यालय में लगभग 1 वर्ष तक काम करके पैसो का बंदोबस्त किया और 1942 से 1944 तक पटना साइंस कॉलेज से इंटर मीडिएट की पढ़ाई पूरी की। इंटर की पढ़ाई के दौरान उन्हें राष्ट्रीय छात्रवृत्ति भी मिली जिससे उन्होंने अपने कुछ आर्थिक मुश्किलातो को भी कम किया वर्ष 1948 में पटना इंजीनियरिंग कॉलेज से पास होने के बाद 1950 में बिहार सरकार के सिंचाई विभाग में उन्हें नौकरी मिल गई तथा उसी वर्ष उनका विवाह गुमला जिले के निवासी डिप्टी कलेक्टर तेजू भगत की पुत्री सुमति उरांव से हुआ पर पढ़ाई में गहरा रुझान और ललक होने के कारण मात्र 2 वर्ष के बाद 1952 में उच्च शिक्षा के लिए वे लंदन चले गए । 10 साल लंदन में रहने के दौरान उन्होंने सिविल इन्स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग की कई बड़ी-बड़ी डिग्रीयां हासिल कर ली । पंखराज साहेब की कुशाग्रता और प्रतिभा को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने विश्व के प्रथम और विशाल न्यूक्लियर एटॉमिक पावर स्टेशन के डिजाइनिंग टीम में उन्हें शामिल कर लिया आज भी यह न्यूक्लियर प्लांट हिंक्ले पॉइंट में शान से खड़ा है और विश्व में प्रसिद्ध है लंदन ब्रिटेन दौरे के दौरान जब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को यह बात पता चली की एक भारतीय आदिवासी युवक ऐसे प्रतिष्ठित प्रोजेक्ट में अपनी सहभागिता दर्ज कर रहा है तो उन्होंने बाबा कार्तिक उरांव जी से मिलने की उत्सुकता व्यक्त की और उन्हें साउथ हॉल लंदन में मिलने के लिए बुलाया तथा मिलकर पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें देश के नवनिर्माण में अपना योगदान देने के लिए प्रेरित किया । 1961 में स्वदेश से भारत लौटने पर H. E. C को धुर्वा में स्थापित करने कि जिम्मेदारी उन्हें मिली। जिसे उन्होंने बखूबी निभाया और सफलतापूर्वक स्थापित भी कर दिया।
H.E.C मैं बतौर डिप्टी चीफ इंजीनियर के रूप में काम करते हुए उन्हें जब भी खाली समय मिलता वे आस-पास के गांव में घूमा करते थे और यह जानने का प्रयास करते थे कि आदिवासियों के बीच ऐसी क्या-क्या समस्याएं हैं जिन्हें दूर करना चाहिए। उन्होंने देखा कि आदिवासी समाज में शिक्षा की कमी है नई चेतना का भी अभाव बढ़ रहा है और साथ ही साथ जो भारतीय संविधान में जो आदिवासियों के लिए कानून और प्रावधान तय किए गए हैं उनका वे सही रूप से प्रयोग नहीं कर रहे हैं ।
इतना ही नहीं आदिवासियों के बीच बढ़ते नशा पान के प्रचलन के कारण । बहारियों ने कौड़ियों के दामों पर आदिवासियों से उनकी जमींने छीन ली । इन सभी चीजों को बाबा कार्तिक उरांव बारीकी से समझ रहे थे ।और यह जाने का प्रयास कर रहे थे और तत्पश्चात उन्होंने एक ऐसा निश्चय किया की वे एक ऐसी व्यवस्था बनाएंगे । जिसमें आदिवासियों की शैक्षणिक, सांस्कृतिक,सामाजिक और राजनीतिक चेतना का उत्थान होगा।
सबसे पहले उन्होंने सांस्कृतिक परंपरा को जीवित करने के लिए सरहुल पूजा के अवसर पर शोभा यात्रा की शुरुआत की और यह शोभायात्रा की परंपरा आज तक कायम है।पंखराज साहेब चाहते थे कि आदिवासी समाज अपनी संस्कृति के प्रति पुनःजागृत हो और देश दुनिया के लोग भी हमारी समृद्ध संस्कृति से परिचित हो शोभा यात्रा की या परंपरा बहुत प्रभावी रही। आदिवासी समाज के मसीहा बाबा कार्तिक उरांव ने आदिवासी समाज की प्राचीन न्यायायिक सामाजिक स्वशासन व्यवस्था "पड़हा " का भी पुनर्गठन 1963 ईस्वी में किया।
पड़हा =>"कई गांवो से मिलकर बनी पंचायत "।
वे चाहते थे कि लोग अपने इतिहास को जाने और अपनी विरासत को भी समझें और उस पर गर्व करें। इसी दौरान उन्होंने महसूस किया कि समाज की समस्याओं का ठोस निदान चाहिए तो राजनीति का माध्यम बनना होगा। वे 1962 में लोकसभा के चुनाव में उतरे पर तैयारी नहीं होने के कारण और साथ ही साथ विरोधियों के दुष्प्रचार के कारण उन्हें हार का मुख देखना पड़ा। वे थोड़े निराश जरूर हुए पर काले हीरे ने अभी हार कहाँ मानी थी।
सन 1967 में एक नए आगाज के साथ वे फिर से लोकसभा चुनाव में लड़े और विजय हुए। बाद में वे 1970 में भी लोकसभा चुनाव में जीते हैं यू तो 1976 में देश में जनता लहर में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। पर 1977 में विधानसभा चुनाव लड़कर जीते और विधायक बन गए । फिर 1980 में पुनः मगर आखरी बार सांसद बन गए ।
70 के दशक में दो बार बिहार के मुख्यमंत्री पद के प्रस्ताव को ठुकराने वाले बाबा कार्तिक उरांव 1980 से 1981 तक अपने जीवन के अंतिम समय तक विमान और दूरसंचार विभाग में एक अच्छे मंत्री के रूप में रहे हैं।स्वर्गीय बाबा कार्तिक उरांव एक दूरदर्शी कुशल राजनेता और उत्तम कोटि के प्रशासक भी थे । यूं तो बाबा कार्तिक उरांव ने आदिवासियों के लिए बहुत सारे काम किए हैं पर ज़ब हम इतिहास की उन पन्नों को देखते हैं जिसमें भूमि दान व्यवस्था से आदिवासियों की जमीन मुफ्त में बंटी जाने वाली थी तब बाबा कार्तिक उरांव ही थे जिन्होंने अपनी आवाज बुलंद कर और आदिवासियों की भूमि को मुफ्त में बाँटने से बचाया था।
यह 60 के दशक के उन दिनों की बात है जब संत विनोबा भावे के द्वारा पूरे देश में भू-दान आंदोलन चलाया जा रहा था तब बाबा कार्तिक उरांव ने इसका विरोध या कहकर किया....की एक आदिवासी के जीवन के अस्तित्व का आधार उसकी जमीन है, "और जमीन नहीं रहेगी तो आदिवासी भी नहीं रहेगा। इसके परिणाम स्वरूप भूमि वापसी अधिनियम 1969 में बनाया गया ।
जिसमें आदिवासियों की जमीन दान में जाने से बच गयी ।पंख राज साहेब के इसी काम के कारण आदिवासी समाज उन्हें मसीहा मानने लगे।
बाबा कार्तिक उरांव ने Chhotanagpur Santhal Pargana Autonomous Development Authority छोटानागपुर संथाल परगना स्वशासी विकास प्राधिकार प्रारूप बनाया।
जिसके लिए उन्होंने एक बजट लाया साथ ही इस विकास प्राधिकार प्रारूप को सुचारू ढंग से चलाने के लिए देश का प्रथम मिनी सचिवालय की स्थापना भी करवाई।
झारखंड को अलग राज्य बनाने से पहले इसे एक केंद्र शासित राज्य बनाना चाहते थे।चूंकि एक किसान के बेटे होने के नाते ।
उनका विचार किसानों की भलाई और खेती पर रहा । उनका मानना था कृषि क्षेत्र में रिसर्च हो । इसका नतीजा यह निकला कि बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना कराने में पंखराज साहेब की अहम भूमिका रही। तथा उनके इस बहुमूल्य योगदान के लिए उस विश्वविद्यालय के परिसर में उनकी प्रतिमा आज भी शान से खड़ी है।lift Irrigation (सिंचाई योजना ) A Tribal Who Roars like a tiger in parliament house. एक आदिवासी जो संसद भवन में एक बाघ की तरह दहाड़ता है।



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