सुरेन्द्रनाथ बनर्जी की जीवनी[Biography of suarendra nath banerjee] - New hindi english imp facts & best moral Quotes 2020

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सुरेन्द्रनाथ बनर्जी की जीवनी


सुरेन्द्र नाथ बनर्जी का जन्म बंगाल के एक कुलीन ब्राह्मण परिवार में 1848 ई ० में हुआ था । 1868 ई ० में वे स्नातक बने , वे उदारवादी विचारधारा के महत्वपूर्ण नेता थे । 1868 ई ० में उन्होंने इण्डियन सिविल सर्विसेज परीक्षा उत्तीर्ण की । इसके पूर्व 1867 ई ० में सत्येन्द्र नाथ टैगोर आई ० सी ० एस ० बनने वाले पहले भारतीय थे । 

1877 ई ० में सिलहट के सहायक दण्डाधिकारी के पद पर उनकी नियुक्ति हुई परन्तु शीघ्र ही सरकार ने उन्हें इस पद से बर्खास्त कर दिया । आई ० सी ० एस ० परीक्षा की आयु को लिंटन द्वारा 21 से घटाकर 19 वर्ष करने पर सुरेन्द्र नाथ ने देश में इसके विरुद्ध व्यापक आन्दोलन चलाया । 1876 ई ० में भारतीयों में जागरुकता फैलाने एवं उन्हें सार्वजनिक राजनैतिक एवं सामाजिक समस्याओं पर संगठित करने के लिए सुरेन्द्र नाथ ने ' इण्डियन एसोसिएशन ' की स्थापना की । उन्होंने इस संस्था को 1883 और 1885 ई ० में अखिल भारतीय राजनीतिक संस्था बनाने का प्रयल किया लेकिन 1885 ई ० में कांग्रेस की स्थापना के पश्चात् इंडियन एसोसिएशन का आस्तित्व दुर्बल और 1886 ई ० में उसका कांग्रेस में विलय हो गया । उन्होंने ' बंगाली ' नामक दैनिक समाचार पत्र का सम्पादन किया । 

कांग्रेस की स्थापना के समय प्रस्तुत घोषणा पत्र उनके निर्देशन में ही तैयार किया गया था । 1895 एवं 1902 ई ० में सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने कांग्रेस की अध्यक्षता की । उन्होंने कर्जन द्वारा पास किये गये कानून कलकत्ता कारपोरेशन एक्ट, विश्वविद्यालय एक्ट एवं बंगाल विभाजन के विरुद्ध बंगाल एवं पूरे भारत में तीव्र आन्दोलन चलाए । किन्तु बंग - विभाजन विरोधी आंदोलन में वे तोड़ - फोड़ तथा असंवैधानिक तरीकों के विरुद्ध थे । बंगाल विभाजन के रूप में बारे में उन्होंने कहा ' बंगाल का विभाजन हमारे ऊपर बम की तरह गिरा प्रसारक है । हमने समझा कि हमारा घोर अपमान किया गया है । ' स्वदेशी के बारे न की में उनका विचार था कि ' स्वदेशी हमें दुर्भिक्ष , अन्धकार और बीमारी से ण्डयन बचा सकता है । स्वदेशी का व्रत लीजिए अपने विचार , कर्म और आचरण नैतिक में स्वेदेशी का उपभोग करें । 

 कांग्रेस कांग्रेस के सूरत विभाजन के समय बनर्जी  नरम दल के सदस्य थे । 1909 ई ० के मार्ले - मिण्टों सुधार के लिए उन्होंने अंग्रेजी साम्राज्य के प्रति कहा कृतज्ञता प्रकट की , किन्तु वे बंग - भंग की समाप्ति चाहते थे । 

  • 1913 ई ० गरिक में उन्हें बंगाल लेजिस्लेटिव काउंसिल और इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल अपने का सदस्य चुना गया । 
  • 1919-20 ई ० के गाँधी नीत आन्दोलन का उन्होंने का समर्थन नहीं किया । 
  • 1921 ई ० में अंग्रेजी सरकार ने उन्हें ' सर ' की उपाधि गा की दी ।
  •   1921-23 ई ० में वे बंगाल सरकार में मंत्री रहे । 1925 ई ० में उनकी और मृत्यु हो गयी । 


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