परिचय -📔📔➡️➡️➡️➡️
झारखंड में पूरे हर्ष उल्लास के साथ सभी त्योहारों को मनाया जाता है। देशभर में मनाये जाने वाले सभी त्योहारों को भी झारखंड में पूरे उल्लास के साथ मनाया जाता है इस राज्य में मनाये जाने वाले त्योहारों से झारखंड का भारत में सांस्कृतिक विरासत के अद्भुत उपस्थिति का पता चलता है। हालाकि झारखंड के मुख्य आकर्षण आदिवासी त्योहारों के उत्सव में होता है। यहाँ की सबसे प्रमुख, उल्लास के साथ मनाए जाने वाली त्योहारो में से एक है सरहुल।झारखंड में कुल 32 जनजातियाँ मिलकर रहती हैं इस कारण यहाँ विभिन्न पर्व त्योहारों का हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है। जिनमें यह 34 प्रमुख पर्व त्यौहार अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
💥 झारखंड के प्रमुख 34 पर्व त्योहार------💥💥💥📔📔
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[1] करमा पर्व =
करमा पर्व प्रकृति संबंधी त्यौहार है यह त्योहार भाद्रपद माह में मनाया जाता है अर्थात भादो एकादशी में मनाया जाता है इस त्यौहार का प्रमुख संदेश कर्म की जीवन में प्रधानता है इस त्यौहार में जावा को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है यह आदिवासी व सदनों में समान रूप से प्रचलित है इस पर्व में भाई के जीवन की कामना हेतु बहन द्वारा उपवास भी रखा जाता है यू कह तो या पर्व हिंदुओं के भाई दूज पर्व की ही भांति भाई-बहन के प्रेम का पर्व है।
💥करमा पूजा की दो श्रेणियां हैं-
1.देश करमा = देश कर्मा का आशय मुख्यतः अखरा में की जाने वाली सामूहिक पूजा से होता है।
2. राज करमा = यह मुख्यता घर के आंगन में की जाने वाली पारिवारिक पूजा होती हैं।
1.देश करमा = देश कर्मा का आशय मुख्यतः अखरा में की जाने वाली सामूहिक पूजा से होता है।
2. राज करमा = यह मुख्यता घर के आंगन में की जाने वाली पारिवारिक पूजा होती हैं।
[2] सरहुल =
सरहुल जनजातियों का सबसे बड़ा पर्व है।जनजातियों में सरहुल पर्व के नाम भिन्न-भिन्न रूप में प्रचलित है उरांव सरहुल पर्व को खददीं कहते हैं संथाल जनजाति इसे बा पर्व के नाम से पुकारते हैं वही खड़िया लोग इसे जकोर पर्व कहते हैं। यह प्रकृति से संबंधित त्यौहार है या चैत माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। इस पर्व में चावल मुर्गी का मांस मिलाकर सुड़ी नामक खिचड़ी बनाई जाती है जिसे प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है और उसे बड़े चाव के साथ खाया जाता है अपरूप फूलों का त्यौहार है या पैरों बसंत के मौसम में मनाया जाता है तथा इस समय साल के वृक्षों पर नया फूल खिलते हैं। सरहुल पूजा के दौरान पहान, पुजारी या नेगना तीन अलग-अलग रंग के युवा मुर्गा प्रदान करते है-पहला सर्वशक्तिमान ईश्वर के लिए, दूसरा गांव के देवताओं के लिए और तीसरा गांव के पूर्वजों के लिए।
जब नेगना या पाहन देवी की पूजा के मन्त्र जप रहे होते है तब ढ़ोल नगाड़ा , मांदर और तुर्ही जैसे पारंपरिक ढोल भी साथ ही साथ बजाये जाते है। पूजा समाप्त होने पर, गांव के लड़के पहान को अपने कंधे पर बैठाते है और गांव की लड्कीया रास्ते भर आगे पीछे नाचती गाती उन्हे उनके घर तक ले जाती है, जहा उनकी पत्नी उनके पैर धोकर स्वागत करती है। तब पहान अपनी पत्नी और ग्रामीणों को साल के फूल भेट करते है। इन फूलो को पहान और ग्रामीण के बीच भाईचारे और दोस्ती का प्रतिनिधि माना जाता है। गांव के पुजारी हर ग्रामीण को साल के फूल 'जावा' वितरित करते है। और तो और वे हर घर की छप्पर, छत पर इन फूलो को डालते है ,जिसे दूसरे शब्दो में "फूल खोसी" भी कहा जाता है। पूजा समाप्त होने के बाद "हडिया" नामक पेय प्रसाद ग्रामीणों के बीच वितरित किया जाता है जो कि, चावल से बनाये बियर होते है। पूरा गांव गायन और नृत्य के साथ सरहुल का त्योहार मनाता है। यह त्योहार छोटानागपुर के इस क्षेत्र में लगभग सप्ताह भर मनाया जाता है। कोलहान् क्षेत्र में इस त्योहार को 'बा पोरोब "कहा जाता है जिसका अर्थ फूलो का त्योहार भी होता है। यह अनेक खुशियो का त्योहार है।
[3]मांडा =
यह पर्व मुख्यतः महादेव शिव की पूजा आराधना के उपलक्ष में मनाया जाता है इसमें महादेव शिव की पूजा होती है या अक्षय तृतीय को आरंभ होती है। या पर्व आदिवासी और सदन दोनों में प्रचलित है। इस पर्व में उपवास रखने वाले पुरुष व्रती को भागता और महिला व्रती को सोखताइन कहते हैं। झारखंड में महादेव की सबसे कठोर पूजा इस पूजा में अंगारों की नली में श्रद्धालु आग पर नंगे पांव के द्वारा चलकर अपनी आस्था को प्रदर्शित करते हैं।
यह पर्व मुख्यतः महादेव शिव की पूजा आराधना के उपलक्ष में मनाया जाता है इसमें महादेव शिव की पूजा होती है या अक्षय तृतीय को आरंभ होती है। या पर्व आदिवासी और सदन दोनों में प्रचलित है। इस पर्व में उपवास रखने वाले पुरुष व्रती को भागता और महिला व्रती को सोखताइन कहते हैं। झारखंड में महादेव की सबसे कठोर पूजा इस पूजा में अंगारों की नली में श्रद्धालु आग पर नंगे पांव के द्वारा चलकर अपनी आस्था को प्रदर्शित करते हैं।
[4]सोहराई =
सोहराय पर्व दीपावली के दूसरे दिन मनाया जाता है। इसका संबंध जानवर धन से है अतः इस पर्व में मवेशियों को नहला कर उनकी पूजा की जाती है। सोहराय पर्व झारखंड के संथाल प्रजाति की सबसे बड़ी पर्व है। इस पर्व को मनाने से पूर्व जनजाति समुदायों द्वारा अपने घरों की दीवारों को सुशोभित रूप से रंगों से रंगा जाता है अर्थात घरों की दीवारों पर पेंटिंग किया जाता पेंटिंग हेतु यह कृत्रिम रंगों के स्थान पर प्राकृतिक पदार्थों जैसे पत्तियां, चावल, कोयला, पत्थर तथा फूलों से रंग प्राप्त कर चित्रकारी करते हैं।[5] सोहराय=
यह कार्तिक अमावस्या को मनाया जाने वाला पर्व है इस पर्व में मुख्यतः पशुओं को श्रद्धा अर्पित किया जाता है तथा इस पर्व मैं पैसों की ही पूजा की जाती है।[6]धान बुनी = इस पर्व में मुख्यतः धान बुनाई का प्रारंभ किया जाता है तथा ध्यान बुनने की प्रक्रिया की शुरुआती समय के प्रारंभ इसी पर्व के बाद से ही आयोजित होता है।
[7] कदलेटा =
यह पर मुख्य ता मेंढक भूत को शांत करने के लिए मनाया जाता है।[8] बहुरा= इसे राइज बहरलक के नाम से भी जाना जाता है। या मुख्यतः महिलाओं के द्वारा स्वस्थ संतान की प्राप्ति हेतु मनाया जाता है तथा इस पर्व में अच्छी वर्षा की भी कामना की जाती है जिससे कृषि और उत्पादन में वृद्धि हो सके।
[9] फगुआ= यह फागुन पूर्णिमा को मनाया जाता है, यह पर्व होली के समरूप त्योहार है।
[10] टुसू पर्व= यह सूर्य पूजा से संबंधित त्यौहार है इसमें सूर्य की पूजा अर्चना बड़े धूमधाम से की जाती है इस पर्व के अवसर पर पंचपरगना मैं टुसू मेला लगता है। इस पर्व के दौरान लड़कियों के द्वारा रंगीन कागज से लकड़ी या बांस के एक प्रेम को सजाया जाता है तथा इसे आसपास के पहाड़ी क्षेत्रों में प्रवाहित किसी नदी को भेंट कर दिया जाता है।
[11]जितिया = यह पर्व मुख्यता मां और पुत्र के बीच अतुल्य प्रेम की दिव्य चमक के रूप में ममता को प्रदर्शित करता है इस पर्व में मुख्यतः मां अपने बच्चों अर्थात अपने पुत्र के दीर्घायु जीवन के लिए तथा उसकी सुख समृद्धि के लिए व्रत रखती है।
[12] भाई भीख= भाई भी ऐसा पर्व है जो 12 वर्ष में एक बार मनाया जाता है, इस पर्व में बहन अपने भाई के घर से भिक्षा मांगकर अनाज लाती है तथा एक निश्चित दिन निमंत्रण देकर अपने भाई को अपने घर पर भोजन कराती है।
[13] जनी शिकार =
यह महिलाओं द्वारा पुरुष वेश धारण कर शिकार खेलने की प्रथा है, इस पर्व में महिलाओं के द्वारा साहस, शक्ति, धैर्य एवं बलिदान का परिचय दिया जाता है यह पर्व 12 वर्ष में मनाया जाने वाला महिलाओं कका सामूहिक त्योहार है। भारत में केवल झारखंड में ही जाते हो हर मनाया जाता है। जानी-शिकार कुरुख महिलाओं द्वारा भक्तियार खिलजी (अलाउद्दीन खिलजी का सेनापति) को भगा देने की याद में किया जाता है, जो रोहताश गढ़ में त्योहार के नववर्ष के अवसर पर किले का कब्जा करना चाहता था , जब पुरुष शराबी हालत में हुआ करते थे। उन्होने 12 साल में 12 बार कब्जा करने की कोशिश की थी और हर बार वे कुरुख महिलाओं द्वारा भगा दिये जाते थे, जबकि वे युद्ध के क्षेत्र में पुरुषों के कपड़े पहनती थी।
[14] देशाउली = यह पर्व 12 वर्ष में एक बार मनाया जाने वाला उत्साव है इस त्यौहार में मरंगबुरू देवता को काला यानी भैंसा की बलि दी जाती है।
[15] मुर्गा लड़ाई= इसे पुरातन सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मनाया जाता है इस खेल में लोग मुर्गों को आपस में लड़ाने वाला खेल खेलते हैं एवं इस पर सट्टा भी लगाया जाता है।
[16] आषाढ़ी पूजा= आषाढ़ माह में मनाए जाने वाले इस पर्व में घर आंगन में बकरी की बलि दी जाती हैं तथा हड़िया का तपान चढ़ाया जाता हैं। ऐसी मान्यता है कि इस पर्व को मनाने से गांव में चेचक जैसी बीमारियों का प्रकोप नहीं होता है।
[17] नवाखानी= नवाखानी पर्व करमा पर्व के बाद मनाया जाता है नवाखानी का अर्थ-' नया अन्न ग्रहण करना'। नवा खानी पर्व को मनाने वाले नवाखानी मैं ही अपने द्वारा उत्पादित या नए अनाजों का सेवन करते हैं।
[18]चाण्डी पर्व = यह पर्व उरांव जनजाति द्वारा मनाया जाता है, इस पर में महिलाएं भाग नहीं लेती है तथा जिस परिवार में कोई महिला गर्भवती हो उस परिवार का पुरुष भी इस पर्व में भाग नहीं लेता।
[19] देव उठान= देव उठान पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष के चतुर्दशी के दिन मनाया जाता है इस पर्व में देवों को जागृत किया जाता है इस पर्व के बाद ही विवाह हेतु कन्या अथवा वर देखने की प्रथा आरंभ की जाती है।
[20] रोग खेदना= यह पर्व रोगों को गांव से बाहर निकालने हेतु मनाया जाता है।
[21] सूर्याही पूजा= इस पर्व में केवल पुरुष भाग लेते हैं तथा या पूजा अगहन माह में आयोजित की की जाती है जिसमें मुर्गा की बलि दी जाती है।
[22] बुरु पर्व= यह पर्व मुंडा जनजाति द्वारा मनाया जाता है, इस पर्व का मुख्य उद्देश्य वन्य जीव तथा मानव का आपसी समन्वय अर्थात तालमेल स्थापित करना होता है तथा इस पर्व में प्राकृतिक प्रकोप उसे समाज की रक्षा हेतु कामना की जाती है।
[23] छठ पूजा= झारखंड राज्य का अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है छठ पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है प्रथम मार्च और द्वितीय नवंबर में या मनाया जाता है। इस पर्व के द्वारा सर्य भगवान की पूजा अर्चना करते हुए उन्हें अर्ध्य अर्पित किया जाता है। यह पर्व अस्त होते हुए सूर्य को प्रसन्न करने हेतु मनाया जाता है।
[24] बंदना= इस पर्व का आयोजन कार्तिक अमावस्या के दौरान किया जाता है। बन्दना काले चंदमा के दौरान मनाया सबसे प्रसिद्ध त्योहारों में से एक है। यह त्योहार मुख्य रूप से जानवरों के लिए हैं। आदिवासी जानवरों और पालतू जानवरों के साथ बहुत करीब होते हैं। इस त्योहार में लोग अपनी गायों एवं बैलों को नहलाते है, साफ करते है, और सुन्दर गहने से सजाते है। इस त्योहार के गीत को ओहिरा कहा जाता है जो पशुओ को समर्पित होते है। इस त्योहार के पीछे धारणा यह है कि पशु हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं और उनके अन्दर भी इंसान जैसी ही आत्मा होती है।
[25] रोहिन /रोहिणी = यह त्योहार झारखंड राज्य के कैलेंडर वर्ष का प्रथम त्यौहार है। इस त्यौहार के प्रारंभ के दिन से किसानों द्वारा खेतों में बीज बोने की शुरुआत की जाती है। इस त्यौहार को मनाने के दौरान किसी प्रकार का नित्य प्रदर्शन या लोकगीत गायन नहीं किया जाता है। [26] एरोक= यह पर्व संथाल जनजाति के द्वारा मनाया जाता है यह आषाढ़ के महीने में बीज बोते समय मनाया जाने वाला पर्व है। [27] हरियाड़ = इस पर्व को संथाल जनजाति के द्वारा ही मनाया जाता है। धान में हरियाली आने पर तथा अच्छी फसल आने के लिए इस पर्व को सावन महीने में मनाया जाता है। [28] साकरात = इस पर्व को भी संथाल जनजाति द्वारा मनाया जाता है। यह पर्व मुख्यतः घर परिवार की कुशलता के लिए एवं एवं खुशहाल जीवन के लिए मनाया जाता है। 
[29] बाहा पर्व = या फिर भी संथाल जनजाति के द्वारा मनाया जाता है। यह पर्व फागुन माह में मनाया जाता है जिसमें लोग शुद्ध जल से होली खेलते हैं अर्थात इसे शुद्ध जल से खेली जाने वाली होली का त्यौहार भी कहा जाता है।
[30] जतरा = यह फिर उराव जनजाति के द्वारा मनाया जाता है, जेड अगर एवं कार्तिक माह मैं मनाया जाने वाला यह पर्व है।
[31] जंकोर = यह पर्व खड़िया जनजातियों द्वारा मनाया जाता है या खड़िया जनजाति का वसंतोंत्सव है।
[32] मुक्का सेंन्द्रा = इस त्यौहार के दौरान जनजातीय महिलाएं पुरुष के कपड़े पहनकर दिनभर पशुओं का शिकार करती है तथा अपना शौर्य पराक्रम दिखाती है। इस त्यौहार को उरांव जनजाति के द्वारा भी मनाया जाता है।
[33]कुटसी = कुर्सी पर्व असुरों द्वारा मनाया जाता है। या पर्व मुख्यतः लोहा गलाने के उद्योग की उन्नति हेतु मनाया जाता है।
[34]गांगी आड़या = यह पर्व माल पहाड़िया के द्वारा मनाया जाता है यह मुख्यतः नई फसल के कटने के उपलक्ष पर यह पर्व भादो माह के महीने में मनाया जाता हैं।
===========================================💥इन्हे भी देखें -➡️➡️➡️motivational
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Introduction-💥💥












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