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| Adiwasi kavita |
आपसी वैमनस्य आपसी टकराव
आपसी प्रेम, करुणा और
आदिवासी एकता का हैं,अभाव।
चुनौतियों को बांधकर
ना एक साथ रुक सका है
तू धैर्य को थाम कर।
तेरे ह्रदय में जलन अग्नि की है,ऐसी माया
वैमनस्य ने फैलाई है,जैसे अंधेर नगरी की छाया
जो उरांव मुंडा स्वतंत्रता संग्राम में गांधी का साथ देता आया
आज अपने परिवार,समाज के बीच
आपसी रंजिश,बैर की बाढ़ में डूबता दिखता पाया।
आपसी वैमनस्य आपसी टकराव
आपसी प्रेम, करुणा और
आदिवासी एकता का हैं,अभाव।
मुंडा,हो,संथाल,उरांव,खड़िया ऐसे
विश्व में 5000 हो तुम जानते
फिर आदिवासी एकता के विचार को
तुम क्यों नहीं मानते?
एक की सफलता के किरण पुंज का साकार होना तुम्हारे भीतर
उसके प्रति कड़वाहट और अंदर से तुम्हारा रोना।
ना चाह कर भी अपने अंदर के आत्मविश्वास को तुम्हारा खोना
तरक्की नहीं करने देगा उन्हें, जिन्होंने सिखाया है
तुम्हे फूट का बीज पिरोना।
जिस तरह जल उठे हैं ये स्वेत भी श्याम से
जल उठा हैं तू भी, नियति और मेहनत के नाम से।
आगे बढ़ चला है तो तू भी घमंड ना कर,
नीचा दिखाने की आड़ मे खुद को खत्म ना कर
अपने घमड़ पर बंदिश लगा दे,हो सके तो तू ही
एकता और कल्याण का दीपक जाला दे।
चल अब एक साथ मिलकर कदम उठा
आपसी द्वेष की अग्नि को अनुरत्ति से बुझा।
अपने मन को दूसरे के विजय
प्रोत्साहन की शीतलता से सींच
मेरे आदिवासी भाई अब एकता की
मजबूत रस्सी को मिलकर खींच।
-----poet - Abishek kachhap (meko)------------------------------------------------------------- ---------
- कविता अच्छी लगी
हो तो अन्य आदिवासी मित्रो तक जरूर पहुंचाइए 🇦🇹
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- See also -
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bahut achaa hai
ReplyDeleteबहुत खूब दोस्त।।👌👌👌👌
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