"गोपाल कृष्ण गोखले जी का जीवन परिचय"
"Gopal Krishna Gokhale's Life Introduction" and his role in the national movement.
- सर्वप्रथम गोपाल कृष्ण गोखले का जन्म 9 मई , 1866 को महाराष्ट्र के कोल्हापुर नामक स्थान पर एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था । 1884 ई ० में स्नातक की डिग्री प्राप्त कर रानाडे द्वारा स्थापित 'देक्कन एजूकेशन सोसायटी' संस्था के सदस्य बने ।
1897 ई ० मे दक्षिण शिक्षा समिति के सदस्य के रूप में गोखले और वाचा को इंग्लैण्ड जाकर ' बेल्बी आयोग ' के समक्ष गवाही देने को कहा गया । 1902 ई ० में गोखले को ' इम्पीरियल परिवार लेजिसलेटिव काउन्सिल ' का सदस्य चुना गया । उन्होंने नमक कर , अनिवार्य रवादी प्राथमिक शिक्षा एवं सरकारी नौकरियों में भारतीयों को अधिक स्थान देने सिविल के मुद्दे को काउन्सिल में उठाया ।
गोखले उदारवादी होने के साथ - साथ सच्चे राष्ट्रवादी भी दे । वे अंग्रेजों सेलहट के प्रति भक्ति को ही राष्ट्रभक्ति समझते थे । गोखले यह कल्पना नहीं कर सकते थे कि अंग्रेजी साम्राज्य के बाहर भारत कुछ प्रगति कर सकता है । अंग्रेजी साम्राज्य को चुनौती देने के दुष्परिणामों की कल्पना करके ही वे अंग्रेजी साम्राज्य के भारी समर्थक बन गये । हार्डिंग से गोखले ने कहा था कि “ यदि अंग्रेज भारत छोड़कर चले गये तब उनके पहुंचने से पूर्व भारतीय नेता उनको लौट आने के लिए तार द्वारा आमंत्रित करेंगे ।
- " गरम दल के लोगों ने उन्हें ' दुर्बल हृदय का उदारवादी ' एवं छिपा हुआ राजद्रोही कहा । नखिल उन्होंने 1905 ई० में बनारस में हुए कांग्रेस के अधिवेशन की अध्यक्षता की ।
उन्होंने 1909 ई ० के मिन्टो - मॉरले सुधार अधिनियम के निर्माण में दुर्वल सहयोग किया । 1912-25 ई ० तक गोखले ' भारतीय लोक सेवा आयोग ' गाली ' के अध्यक्ष रहे । राष्ट्र की सेवा के लिए राष्ट्रीय प्रचारकों को तैयार करने ना के हेतु गोखले ने 12 जून , 1905 को भारत सेवक समिति की स्थापना की । 1895 इस संस्था से पैदा होने वाले महत्वपूर्ण समाज सेवकों में वी ० श्रीनिवास शास्त्री , जे ० के ० देवधर , एन ० एम ० जोशी , पंडित हृदय नाथ कुंजरू रेशन आदि थे । उन्होंने ' पूना सार्वजनिक सभा ' की पत्रिका तथा ' सुधारक ' का सम्पादन भी किया ।
गोखले ने स्वदेशो का प्रचार करते हुए भारत में औद्योगीकरण का आंदोल समर्थन किया । किन्तु वे बायकाट की नीति के विरुद्ध थे । यद्यपि अपने के अनि समझौतेवादी स्वभाव से वशीभूत 1906 ई ० के कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन के बाद में उन्होंने बायकाट के प्रस्ताव का समर्थन किया । 1915 ई ० में इनकी से एक मृत्यु हो गयी । महात्मा गाँधी ने अपने इस राजनैतिक गुरु के बारे कहा सक्रिय गयी ।
' सर फिरोज शाह मुझे हिमालय की तरह दिखाई दिये जिसे मापा नहीं जा सकता और लोकमान्य तिलक महासागर की तरह जिसमें कोई आसानी से अशान्ति उतर नहीं सकता , पर गोखले तो गंगा के समान थे जो सबको अपने पास लाला बुलाती है । ' तिलक ने गोखले को ' भारत का हीरा ' , ' महाराष्ट्र का लाल ' और ' कार्यकर्ताओं का राजा ' कहकर उनकी सराहना की ।







Very nice ..������
ReplyDelete